निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्टों’ के जीवन से आदर्श धारे-धारे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यावहारिकता सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है।
जब आदर्श और व्यवहार में से लोग व्यवहारिकता को प्रमुखता देने लगते हैं और आदर्शें को भूल जाते हैं तब आदर्शें पर व्यावहारिकता हावी होने लगती है। फ्प्रैक्टिकल आइडियालिस्टय लोगों के जीवन में स्वार्थ व अपनी लाभ-हानि की भावना उजागर हो जाती है। लोगों की आदत होती है कि क्षणिक सफलता के मद में वे प्रैक्टिकल आइडियलिस्टों की सराहना करने लगते हैं। इस प्रशंसा के मद में चूर होकर, प्रैक्टिकल आइडियलिस्ट धीरे-धीरे आदर्शों से दूर होने लगते हैं। एक समय आता है जब केवल उनकी व्यावहारिक बुद्धि ही दिखती है और वे धीरे-धीरे आदर्शों से पूर्णतः दूर होते चले जाते हैं|